उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अंतरिम आदेश देते हुए ऊधमसिंह नगर जिले के रुद्रपुर शहर में स्थित नजूल भूमि पर सभी तरह के निर्माण और विकास गतिविधियों पर रोक लगाई है। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद निजी प्रतिवादियों की प्रस्तावित सैकड़ों करोड़ रुपये के वाणिज्यिक मॉल परियोजना पर फिलहाल ब्रेक लग गया है।
मुख्य न्यायाधीश नरेन्दर एवं न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। रुद्रपुर नगर निगम के पूर्व सदस्य रामबाबू ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि रुद्रपुर के राजस्व ग्राम लमारा के खसरा संख्या 2 की लगभग 4.07 एकड़ (16,500 वर्ग मीटर) नजूल भूमि मूलरूप से जल निकाय (तालाब/पॉन्ड लैंड) थी। 1988 में इस भूमि की नीलामी केवल मत्स्य पालन के विकास के लिए दो साल की लीज पर की गई थी लेकिन सफल बोलीदाताओं ने न तो लीज स्वीकार की और ना ही मछली पालन का कार्य किया। याचिका में कहा गया कि बोलीदाताओं/निजी प्रतिवादियों ने बिना किसी वैध पट्टे या लीज समझौते के कथित तौर पर अधिकारियों को गुमराह कर और सांठगांठ कर कब्जा की गई नजूल की भूमि को फ्रीहोल्ड करा लिया। धोखाधड़ी को छिपाने के लिए, फ्रीहोल्डिंग के दौरान मूल खसरा संख्या 2 (ग्राम लमारा) को बदलकर खसरा संख्या 156 (राजस्व ग्राम रामपुरा) कर दिया गया जिससे राजस्व रिकॉर्ड में गंभीर विसंगतियां पाई गईं।
फ्रीहोल्ड नीलामी की पुरानी दरों (1988) पर की गई जबकि यह भूमि वर्तमान में कई सौ करोड़ की है। इससे राज्य के खजाने को भारी नुकसान हुआ। याचिका में बताया गया कि निजी प्रतिवादियों ने जमीन को फ्रीहोल्ड करने के बाद निर्माण कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम समझौता किया। वे जल्द ही इस सार्वजनिक भूमि पर एक विशाल मॉल बनाने वाले थे।
कोर्ट ने मामले की प्राथमिक सामग्री और संलग्न दस्तावेज की समीक्षा करने के बाद विवादित स्थल पर निर्माण पर तत्काल रोक लगा दी है। कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए जिला प्रशासन और नगर निगम सहित सभी प्रतिवादी अधिकारियों को विवादित खसरा संख्या पर किसी भी प्रकार की निर्माण अनुमति, लेआउट मंजूरी या विकास कार्य की अनुमति न देने के लिए कहा है।
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