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उत्तराखंड /नैनीताल

उत्तराखंड को देवों की भूमि कहा जाता है यहां पर बसने वाले देवी, देवताओ, मंदिरों वह शक्ति पीठ अपने आंचल में कई रहस्य, आस्था और इतिहास को समेटे हुए हैं, उत्तराखंड राज्य के हल्द्वानी शहर से 40 किलोमीटर दूर हरी-भरी पहाड़ियों के बीच बसा विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नैनीताल, जो जिला मुख्यालय भी है, इस नाम और जगह को आप भली-भांति वाकिफ होंगे , वही….
नैनीताल का नाम सुनते हीआपके मन में ऊंचे पहाड़ ठंडी वादियां नौका और झील संचरित होता होगा! लेकिन क्या आपको पता है

1 शक्तिपीठ भी स्थापित है जिस चलते यहां का नैनीताल और झील को नैनी झील के नाम से जाना जाता है! यह शक्तिपीठ मां नैना को समर्पित है, जिन पर सम्पूर्ण भारत से यहाँ आने पर्यटको,श्रद्धालुओ के साथ विदेशों से आने वाले पर्यटक को के भी आस्था का केंद्र है !


नैना देवी मंदिर


 नैनी झील के उत्तरी छोर पर माँ  नैना देवी मंदिर स्थित है। जहाँ सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर के अंदर प्रवेश के दौरान आपको दो नेत्रों के दर्शन होंगे,जो नैना देवी को दर्शाते हैं। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां..

शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसीसे प्रेरित होकर इस मंदिर की स्‍थापना की गई है।
पौराणिक मान्यताये
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती  का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जहा अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी और वचन दिया की ‘मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके फलस्वरुप यज्ञ के हवन – कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।’ जब शिव को यह ज्ञात हुआ की उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध का से होने वाली प्रलय की आशंका से अन्य देवी देवता भी भयभीत होने लगे । भगवान भोलेनाथ ने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ स्थल में तांडव कर डाला और सब कैंसिल कर दिया, सभी देवी – देवता शिव के इस रौद्र – रूप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी – देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश – भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ – जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ – वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे ; वहीं पर नैना देवी के रूप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का ..

नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रूप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रूप में होती है।
पूरे भारतवर्ष में कुल 51 शक्तिपीठ है जिनमें सभी की उत्पत्ति की एक ही कथा है, यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हैं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इन सभी स्थलों पर माता सती के अंग गिरे थे । प्राचीन मान्यताओं के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में पति का अपमान होने पर माता सती ने स्वयं को उसी यज्ञ में भस्म कर लिया था, इसके बाद शिवजी अपना आपा खो बैठे तथा माता सती के देह को लेकर इधर उधर भटकने लगे । सभी देवताओं ने मिलकर भगवान विष्णु से इस समस्या का समाधान करने को कहां, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के 51 टुकड़े कर दिए । उसके बाद जहां जहां माता के शरीर का हिस्सा गिरा वहां वहां शक्तिपीठ बन गए । नैना देवी का नाम भी माता के 51 शक्तिपीठों में आता है कथा के अनुसार यहां माता सती के दोनों नेत्र गिरे थे ।